दर्दनाक दास्तान : चार दिन में लगाए 25 अस्पतालों के चक्कर, फिर भी मौत
लता, हम शर्मिंदा हैं। चाहकर भी हम तुम्हें और उस मासूम जिंदगी को बचा नहीं पाए। हम रात-दिन तुम्हारे लिए अस्पतालों में चक्कर लगाते रहे। 80 किलोमीटर दूर सोनीपत तक पहुंच गए लेकिन देखो, इस सिस्टम को। न इन्हें लज्जा आती है और न ही कोई शर्म। चार दिन तक हम अस्पतालों के दरवाजों पर गिड़गिड़ाते रहे लेकिन सुनने वाला कोई नहीं।
तुम्हारे लिए हम नेताओं के पास तक पहुंच गए लेकिन इनकी झूठी जुबान एक लाचार परिवार का मजाक बना गई। 23 अप्रैल को तुम संक्रमित हुईं और रात में ही सांसें उखडने लगीं। मुझे लगा अखबार और टीवी चैनल तो सब बेहतर ही बता रहे थे। दिल्ली में बड़े बड़े अस्पताल हैं तो चिंता की कोई बात भी नहीं लेकिन हमें क्या पता था? तुम्हारे लिए राजौरी गार्डन से लेकर पश्चिमी दिल्ली के सभी अस्पताल भरे थे।
एक नेता को फोन किया तो उन्होंने रेनबो अस्पताल में व्यवस्था करने का दिलासा दिया तो हम तुम्हें लेकर वहां सुबह तीन बजे पहुंच गए लेकिन देखो, वहां पता चला कि उस नेता ने हमसे झूठ बोला जो सोशल मीडिया पर औरों की मदद करने की वाहवाही लूट रहा है। फिर हमने टिवटर पर निर्भय जीवन से मदद मांगी। उन्होंने सेंट स्टीफन्स अस्पताल में भर्ती भी कराया लेकिन 25 अप्रैल की सुबह अस्पताल ने कह दिया कि यहां आईसीयू नहीं है।
दुर्भाग्य से फिर हमने टिवटर पर निर्भय जीवन की टीम से मदद मांगी और हम सिंधु बॉर्डर होते हुए तुम्हें लेकर भगत मूलचंद अस्पताल तक पहुंच गए लेकिन देखो, वहां भी सिस्टम ने हमारी लाचारी का फायदा उठाया। फोन पर यहां बेड होने और डेढ़ लाख रुपये नकद लाने का विश्वास दिलाया। जब यहां पहुंचे तो बिस्तर खाली न होने का हवाला दिया।
हमने फिर वहीं मदद मांगी क्योंकि मैं तो लता कभी यहां आया भी नहीं। वो लोग मेरी कॉल पर तुरंत सहायता दे रहे थे इसलिए मैं उनसे मदद मांग रहा था। अब तो मैं सोनीपत के सिविल अस्पताल भी आ गया। रविवार था और 26 अप्रैल थी लेकिन फिर भी डॉक्टरों को देख मन खुश हो गया लेकिन अगले ही क्षण डॉ. तरूण ने वहीं बोल दिया जिसे मैं सुनता हुआ दिल्ली से पहुंचा था। मेरी आंखों में आंसू और चेहरे पर परेशानी देख डॉक्टर के मन में शायद कुछ आया हो, तभी तो उन्होंने खानुपर मेडिकल कॉलेज रैफर कर दिया।
जरा सोचो लता, पश्चिमी दिल्ली के रमेश नगर से मैं तुम्हें दिल्ली में घुमाता हुआ कहां ले आया और अब आगे खानपुर तक लेकर जा रहा हूं। तुम तो कहती थीं कि दिल्ली से बाहर ले जाते नहीं, कभी सोचा नहीं था कि इस हालत में तुम्हें लेकर बाहर आऊंगा। मुझे माफ कर दो, लता। खैर निर्भय जीवन के सदस्य अंकित चौहान ने लता तुम्हारी बहुत मदद की। हेमलता भारद्वाज ने भी काफी सहयोग दिया लेकिन पता है लता, यह सिस्टम ही बर्बाद है। तुम्हारे पेट में दर्द हो रहा है मुझे पता है।
तुम्हारी पीड़ा को महसूस कर रहा हूं। इसलिए दो दिन तक तुम ऊपर कोरोना वार्ड में थीं और मैं नीचे सड़क पर था। किसी ने मुझे तुमसे नहीं मिलने दिया। भगवान मेरे साथ ऐसा कभी हो सकता है? ये बात मेरे मन में हर पल आ रही थी लेकिन देखो इसी बीच कमबख्त बुरी खबर सुन ली कि वो मासूम जिंदगी ने गर्भ में ही दम तोड़ दिया।
दुखी हूं, रोना चाहता था, लेकिन कैसे रोता, तुम जो खतरे में थीं लता। मैं भगवान से दुआएं कर रहा था कि जो हुआ सो हो गया। तुम्हें बचा ले भगवान। मैं लाचार, भगवान ने भी नहीं सुनी। तुम भी इस दुनिया से चली गईं लता। तुम्हारे शव को अंतिम संस्कार करने के लिए ले जाना था लेकिन देखो इस सिस्टम ने मुझे वहां भी नहीं छोड़ा। चार घंटे तक कागज के लिए मैं तरस रहा था, रो रहा था कि तुम्हें देख लूं लेकिन किसी ने मेरे दर्द को नहीं समझा, मुझे माफ कर दो लता। मैं तुम्हें और अपनी मासूम जान को बचा नहीं पाया।
(ये दर्द और शब्द लता के पति चंदन कुमार के हैं जिन्होंने बुधवार को ही सोनीपत में अपनी गर्भवती पत्नी का अंतिम संस्कार किया है।)
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