उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के केंद्रीय विद्यालय में कक्षा सात के विद्यार्थियों को तथ्यों से इतर महाभारत पढ़ाई जा रही है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की पुस्तक में लिखा है कि जरासंध ने भगवान श्रीकृष्ण को युद्ध में हरा दिया था। इस कारण श्रीकृष्ण को द्वारका जाना पड़ा था। इसे लेकर विवाद खड़ा हो गया है।
श्रीमद्भागवत की छपाई के प्रमुख केंद्रों में शुमार गीता प्रेस प्रबंधन व इतिहासकारों ने इसे तथ्यों से दूर बताया है। साथ ही कहा कि विद्यार्थियों को भगवान श्रीकृष्ण से संबंधित गलत जानकारी दी जा रही है। केंद्रीय विद्यालय के कक्षा सात में बच्चों को 'बाल महाभारत कथा' नामक पुस्तक पढ़ाई जा रही है। हिंदी की पूरक पाठ्यपुस्तक के रूप में पढ़ाई जाने वाली यह पुस्तक चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य की महाभारत कथा का संक्षिप्त रूप है।
दरअसल, यह प्रसंग युधिष्ठिर और भगवान श्रीकृष्ण के संवाद के रूप में उल्लेखित है। पुस्तक में उल्लेखित तथ्यों के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण राजसूय यज्ञ के लिए युधिष्ठिर से चर्चा कर रहे थे। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि इस यज्ञ में सबसे बड़ा बाधक मगध देश का राजा जरासंध है। जरासंध को हराए बिना यह यज्ञ कर पाना संभव नहीं है। हम तीन बरस तक उसकी सेनाओं से लड़ते रहे और हार गए। हमें मथुरा छोड़कर दूर पश्चिम द्वारका में जाकर नगर और दुर्ग बनाकर रहना पड़ा।
पुस्तक के प्रकाशन प्रभाग के अध्यक्ष एम. सिराज अनवर, मुख्य संपादक श्वेता उप्प्ल, मुख्य व्यापार प्रबंधक गौतम गांगुली, संपादक मीरा कांत और उत्पादन सहायक प्रकाश वीर सिंह हैं। पुस्तक के लेखन से जुड़े लोगों का पक्ष नहीं मिल सका है। जैसे ही पक्ष मिलेगा, उसे प्रकाशित किया जाएगा।
गीता प्रेस प्रबंधक लालमणि तिवारी ने बताया कि मूल महाभारत में कहीं भी भगवान श्रीकृष्ण के जरासंध से हारने का उल्लेख नहीं है। मूल श्लोक में भी इसका जिक्र नहीं है। इस बात का उल्लेख जरूर है कि जरासंध से पीड़ित होकर ही भगवान कृष्ण द्वारका आ गए थे। महाभारत में राजसूय यज्ञ के आरंभ का 14वें अध्याय का 67वां श्लोक है। इसमें भीम द्वारा जरासंध के वध का जिक्र है।
गोरखपुर विश्वविद्यालय प्राचीन इतिहास के शिक्षक प्रो. राजवंत राव ने बताया कि जरासंध से भगवान श्रीकृष्ण के पराजित होने का उल्लेख महाभारत में नहीं है। हरिवंश पुराण या किसी दूसरी जगह भी इस तरह के तथ्य नहीं मिले हैं। सभी जगह इस बात का उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण अंतिम समय तक शांति का प्रयास करते रहे। वह जरासंध को मिले वरदान से भलीभांति परिचित थे। जानते थे कि सामान्य परिस्थितियों में किसी शस्त्र से जरासंध की मौत नहीं हो सकती है। लिहाजा, द्वारका नामक शहर बसाया और कहा कि अब मथुरा के लोग सुख-शांति से रहेंगे। बाद में भगवान श्रीकृष्ण ने ही भीम की मदद से जरासंध का वध कराया।
ये है धार्मिक एवं पौराणिक मान्यता
प्रांत संचालक पृथ्वीराज सिंह ने बताया कि आरएसएस लेखक से गलती हुई है। ऐसा तथ्य कहीं नहीं मिलता है। तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पढ़ाए जाने वाले इतिहास, पाठ्यक्रम बदले जाने चाहिए।
गोरखपुर शहर लोकसभा क्षेत्र के सांसद रवि किशन ने बताया कि पहले की सरकारों ने संस्कृति, संस्कार व इतिहास से छेड़छाड़ की। जो इतिहास में नहीं हुआ, उसे पढ़ाने से क्या फायदा है? अब आने वाली पीढ़ियों को सत्य पढ़ाया जाएगा। अच्छा संस्कार मिलेगा। भाजपा सरकार ने संस्कारवान शिक्षा की नींव रख दी है। नई शिक्षा नीति ही विद्यार्थियों को संस्कारवान बनाएगी। केंद्रीय विद्यालय की पुस्तक में कुछ भी गलत पढ़ाया जा रहा तो उसे बदलने की सिफारिश की जाएगी।
श्रीकृष्ण ने कंस का वध कर दिया था। इससे कुपित होकर कंस के मित्र व रिश्तेदार जरासंध ने मथुरा पर लगातार आक्रमण करना शुरू कर दिया। श्रीकृष्ण उसे बार-बार परास्त करते, फिर भी वह हार नहीं मान रहा था। ऐसा 16 बार हुआ। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने आत्म चिंतन किया। सोचा कि कंस का वध करने का उत्तरदायी हूं। जरासंध बार-बार आक्रमण करता है, तो जनहानि होती है। मथुरा का विकास बाधित है। श्रीकृष्ण यह भी जानते थे कि जरासंध की मृत्यु उनके हाथों नहीं लिखी है। लिहाजा, मथुरा का त्याग कर दिया और द्वारका जाकर रहने लगे।
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