प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने भले बातचीत के दरवाजे खोल रखे हों लेकिन आंदोलनकारी किसान नए कृषि सुधार कानूनों पर आगे चर्चा के लिए राजी नहीं हैं। सरकार से अब तक की हुई बातचीत और मिले प्रस्तावों को संयुक्त किसान मोर्चा ने खारिज कर दिया है। इस ‘बात’ से फिलहाल बात बनती नहीं दिख रही है। सरकार और किसान मोर्चा ने एक-दूसरे के पाले में गेंद डाल दी है। 12 और 14 दिसंबर के आंदोलन की घोषणा के बाद आगे इसके विस्तार के संकेत हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बातचीत से बात बनने की ओर इशारा किया है। किसान नेता ने भी इस इशारे को समझा है। ‘डेडलॉक’ के बीच बात बनने के आखिरी वैकल्पिक रास्ते के लिए आंदोलनकारी किसानों को अब सरकार के नए प्रस्ताव का इंतजार है। नए प्रस्ताव के लिए तैयार हो पाना सरकार के लिए इतना आसान भी नहीं।
बात-बेबातः गेंद एक-दूसरे के पाले में
किसान मोर्चा की ओर से सरकार के 10 प्रस्तावों को ‘भ्रामक’ बताने के बाद कृषि मंत्री तोमर ने बृहस्पतिवार को प्रेस कांफ्रेंस कर स्थिति साफ की। तोमर ने कहा कि इन प्रस्तावों पर रजामंदी हो तो बातचीत के दरवाजे हमेशा खुले हैं। तोमर की प्रेस कांफ्रेंस के बाद किसान मोर्चा ने बैठक की और प्रस्तावों को खारिज कर आंदोलन जारी रखने का फैसला लिया। जाहिर है, सरकार कानून वापस लेने को राजी नहीं है और संयुक्त किसान मोर्चा कानून रद्द कराने पर कायम है। तोमर के जवाब में कांग्रेस हिमायती भाकियू राजेवाल के बलवीर सिंह राजेवाल ने कहा कि कृषि व विपणन राज्य का मामला है, इसलिए केंद्र का यह कानून रद्द होना चाहिए। केंद्र साफ कर चुका है कि राज्य का मामला नहीं।
बिगड़ी बात बनाने को नए प्रस्ताव का इंतजार
नई संसद की आधारशिला रखते हुए पीएम मोदी ने संकेत दिए कि संसद के भीतर या बाहर संवाद होना चाहिए। उनका इशारा किसान आंदोलन की ओर था। भाकियू डकौंदा के बूटा सिंह बुर्जगिल ने खास बातचीत में संकेत दिए कि अब संसद में ही बातचीत का विकल्प बचा है। इसी से रास्ता खुल सकता है। पीएम मोदी ने भी बृहस्पतिवार की सुबह लोकतंत्र में संसद के भीतर और बाहर संवाद की बात कही थी। ऐसे में संयुक्त किसान मोर्चा को अब नए प्रस्ताव की आस है। इससे पहले विपक्ष का शिष्टमंडल भी राष्ट्रपति से मिलकर संसद सत्र बुलाने की मांग कर चुका है।
यहां बता दें कि सरकार संसद के शीतकालीन सत्र को टालने का मन बना चुकी है। सीधे बजट सत्र चाहती है। ऐसे में नए कृषि कानून से उपजे विवाद पर विशेष सत्र बुलाकर चर्चा की मांग और प्रस्ताव का इंतजार विपक्षी दलों के साथ आंदोलनकारी किसानों को भी है। अब यह पूरी तरह से सरकार और पीएम मोदी पर निर्भर करेगा कि सरकार संसद सत्र बुलाकर चर्चा को तैयार होती है या नहीं। लड़ाई में वैकल्पिक रास्ते के लिए सरकार का सहमत होना इतना आसान नहीं। हालांकि, नए कानूनों में किसानों की ज्यादातर असहमति पर सरकार सहमत होकर संशोधन को तैयार है। संशोधन की सूरत में भी संसद की मुहर अनिवार्य होगी। ऐसे में गतिरोध दूर करने के लिए किसान जत्थेबंदियों को कानून खत्म करने की जिद से थोड़ा नरम पड़ना होगा, तो वहीं सरकार को संसद का सत्र बुलाकर चर्चा के लिए राजी होना पड़ेगा। यही एक विकल्प है, जिसकी सुगबुगाहट बृहस्पतिवार को पीएम के संवाद की अपील के बाद शुरू हो गई।
आंदोलन की रूपरेखा
भाकियू डकौंदा के बूटा सिंह बुर्जगिल ने दो टूक कहा कि संशोधन या चर्चा के लिए संयुक्त किसान मोर्चा अब समय बर्बाद करने के बजाए संघर्ष जारी रखेगा। यह सरकार पर निर्भर करता है कि वह कोई नया प्रस्ताव दे। उन्होंने कहा कि एक तरफ पीएम मोदी बातचीत की वकालत करते हैं, दूसरी तरफ कृषि मंत्री तोमर कहते हैं कि प्रस्ताव मंजूर हो, तभी बातचीत को आएं। बुर्जगिल ने चेताया कि अब तक का प्रस्ताव मंजूर नहीं है। नए प्रस्ताव का इंतजार है। बात नहीं बनी तो आगे आगे रेलगाड़ियां रोकी जाएंगी। इस चेतावनी के बाद रेलवे ने पंजाब की ट्रेनों के मार्ग में परिवर्तन व रद्द करने का फैसला कर लिया है। भाकियू ने पंजाब के सभी रेल कॉम्प्लेक्स पर धरना जारी रखने का फैसला लिया है। पंजाब में जितने टोल नाका फ्री नहीं हैं, उन्हें फ्री कराया जाएगा। 12 दिसंबर को एक दिन के लिए देश भर के टोल फ्री कराए जाएंगे। 14 दिसंबर को देश भर में कलेक्ट्रेट पर धरना-प्रदर्शन के अलावा दिल्ली-जयपुर, दिल्ली-आगरा एक्सप्रेस वे जाम होंगे।
संचालन कमेटी बनाई
आंदोलन के दौरान कोई गड़बड़ी न हो, इसके लिए संचालन कमेटी बनाई गई है जो सिंघु, टिकरी, शंभू बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन स्थलों की कमान संभाल लेगी। इस कमेटी में पांच प्रांतीय और दो संयुक्त मोर्चा (राष्ट्रीय स्तर) के सदस्य होंगे। इनके साथ सभी जत्थेबंदियों से जुड़े 60 कार्यकर्ता होंगे, जो दो स्तर पर निगरानी करेंगे। किसी राजनीतिक दल या बाहरी को आंदोलन में घुसने से रोकेंगे। साथ ही जिला-ग्रामीण स्तर के कार्यकर्ताओं को ‘गलती या गड़बड़ी’ करने से रोकेंगे। किसान संगठनों का आरोप है कि पंजाब और उत्तराखंड से आ रहे किसानों को जहां-तहां रोका जा रहा है।
भाकियू उगराहा फिर अलग-थलग
किसान संयुक्त मोर्चा की बृहस्पतिवार की बैठक से भी भाकियू उगराहा अलग-थलग पड़ गई। इसमें पंजाब की 30 जत्थेबंदियों के अलावा बाकी राज्यों की जत्थेबंदियां भी शामिल हुईं। इस संगठन के प्रांतीय प्रधान जोगिंदर सिंह उगराहा कहते हैं कि आंदोलन में वह संयुक्त मोर्चा के साथ हैं। अलग-थलग नहीं। कोई फूट नहीं है, हम एकजुट हैं। बुर्जगिल बताते हैं कि पंजाब की 30 जत्थेबंदियों ने पहले ही 10 दिसंबर तक का अल्टीमेटम सरकार को दिया था, इसलिए आज की बैठक में 32 में 30 जत्थेबंदियां ही शामिल हुईं।
0 Comments