1978 की ऐतिहासिक किसान रैली के नायक रहे चौधरी चरण सिंह की आज (23 दिसंबर) को जयंती है।सभी विश्लेषक एवं राजनीति के जानकार संख्या बल के लिहाज से उस रैली को आजाद भारत की सबसे बड़ी रैली होने की संज्ञा दे चुके हैं। वह रैली बोट क्लब से संचालित थी और इंडिया गेट के आगे नेशनल स्टेडियम के पार तक भीड़ का नजारा मंच से स्पष्ट नजर आता था। उस रैली के उद्देश्य आर्थिक एवं राजनीतिक, दोनों थे। मोरारजी देसाई मंत्रिमंडल से चौधरी चरण सिंह व राज नारायण का निष्कासन हो चुका था, लेकिन चौधरी चरण सिंह किसान हितों को लेकर निरंतर चिंतित राजनेता के रूप में देशव्यापी ख्याति प्राप्त कर चुके थे। ग्रामीण उपेक्षा से उपजी बदहाली, गांव से शहर की ओर बढ़ता पलायन, गांव एवं शहर के बीच बढ़ती आर्थिक-सामाजिक विषमता, किसानों को उनके उत्पाद का उचित दाम नहीं मिलना आदि प्रश्नों पर वह पंडित नेहरू के कार्यकाल से ही मुखर विरोध दर्ज कराते रहे।
1957 में कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन नागपुर में आयोजित हुआ, जिसमें पार्टी की ओर से पंडित नेहरू ने प्रस्ताव किया कि भारत में भी सहकारी खेती को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश के प्रमुख मंत्री होते हुए चौधरी चरण सिंह ने प्रस्ताव का विरोध करने का फैसला किया। इससे पूर्व उत्तर प्रदेश में पंडित गोविंद बल्लभ पंत के राजस्व मंत्री के रूप में जमींदारी उन्मूलन लागू कर वह काफी वाहवाही लूट चुके थे। चौधरी चरण सिंह ने बिंदुवार अधिकारिक प्रस्ताव का विरोध प्रारंभ कर दिया। वह भारतीय समाज की मानसिकता एवं कृषि भूमि के प्रति किसान के व्यक्तिगत लगाव पर धाराप्रवाह बोलते रहे और अधिवेशन में उपस्थित कार्यकर्ता करतल ध्वनि से उनका स्वागत करते रहे। उनके भाषण की समाप्ति के बाद यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया।
जबकि उस समय पंडित नेहरू कांग्रेस के पर्याय और पार्टी के वैचारिक सिद्धांतकार भी माने जाते थे। लोहिया एवं दीनदयाल उपाध्याय जिस गैर कांग्रेसवाद की पटकथा तैयार कर रहे थे, उसे उत्तर प्रदेश में परवान चढ़ाने का काम बिना चौधरी चरण सिंह के संभव नहीं था। वह प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने, जो साफ-सुथरी छवि एवं कुशल प्रशासक के रूप में अमिट छाप छोड़ गए। मंडी व्यवस्था के स्वरूप को लेकर भी उनकी राय स्पष्ट थी और किस प्रकार बिचौलिए मनमाने तरीके से किसान की फसल का दाम ओने-पौने दर पर तय करते हैं, इस पर उन्होंने कई लेख लिखे। वह इसे ज्यादा पारदर्शी एवं जवाबदेह बनाने के पक्षधर थे। इसी समृद्ध वैचारिकता के कारण “बोट क्लब” की रैली ऐतिहासिक बन गई। अपने सभी आलोचकों को उन्होंने निरुत्तर कर दिया, जब प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई पर कोई असुविधाजनक टिप्पणी किए बिना उन्होंने गांव, कृषि, बढ़ती असमानता और भ्रष्टाचार पर अपने भाषण को केंद्रित किया। इस शक्ति का प्रदर्शन उनके लिए कई राजनीतिक संभावनाओं को जन्म दे गया। इसी भिन्न दृष्टिकोण ने उन्हें और अधिक प्रभावी एवं उपयोगी साबित किया। जनता पार्टी ने उन्हें उप-प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी। अपने पहले ही बजट में उन्होंने किसानों के लिए नाबार्ड जैसे संगठन की स्थापना की, जो आज भी कृषि हितों के संरक्षण की जिम्मेदारी में संलग्न है।
(-लेखक पूर्व सांसद एवं जद(यू) के प्रधान महासचिव हैं।)
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